नारी सुधार आंदोलन एवं ब्रह्मसमाज- राजा राममोहन राय


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री सुधार आंदोलन एवं ब्रह्मसमाज - 

19वीं शताब्दी के उदारवादी सुधारको में राजा राममोहन राय अग्रणी है आपने ब्रह्म समाज की स्थापना की। अनेक सामाजिक सुधारो के साथ नारी संबंधित उनके सुधार एवं कार्य बहुत महत्वपूर्ण है उन्होंने सर्वप्रथम सती प्रथा का विरोध किया उनके अथक प्रयासों के परिणाम स्वरुप लॉर्ड विलियम बैंटिक के समय में सती प्रथा को रोकने के लिए कानून पारित हुआ।

ती प्रथा का विरोध - राजा राममोहन राय प्रथम हिंदू थे जिन्होंने इस न की प्रथा के विरोध में सामाजिक कदम उठाया और इसे समाप्त करने की की जान से कोशिश की उन्होंने इसको प्रथा के विरुद्ध समाज में रहने वाले अपने अन्य साथियों को एकत्र किया तत्पश्चात अपनी रचनाओं लिखो पत्र पत्रिकाओं आदि के माध्यम से इस प्रथा के विरुद्ध जनसमूह का निर्माण प्रारंभ कर दिया जब किसी विधवा को बलपूर्वक चिता में जोग दिया जाता तो राजा जी के विरोध करने पर लोग उन्हें मुसलमान नास्तिक आदि का कर अपमानित करते और उन्हें वहां से हटा देते बाद में उनके इस कार्य में उनके एक अभिन्न मित्र व सहयोगी स्वामी हरिहरानंद ने उनकी सहायता व सराहना करते हुए सती प्रथा की कटु आलोचना की।

राजा जी ने यहां सिद्ध करने का पूर्ण प्रयत्न किया की सती प्रथा ना तो शास्त्र सम्मत है और नहीं इसका कोई विधिक नैतिक या मानवीय आधार है और ना ही सती होने वाली विधवा की पवित्रता या त्याग जैसे कोई धारणा है ऐसे अनेक तर्कों के द्वारा इस प्रथा की निंदा करने से राजा जी ने तब तक चैन नहीं लिया जब तक की सरकार ने कानूनन ईसे समाप्त नहीं कर दिया और इस प्रकार 4 दिसंबर 1829 ई को तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने विनियम 17 के अंतर्गत सती प्रथा को बंद कर दिया एक समाज सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय की यह एक महानतम विजय थी।

बहु विवाह प्रथा का विरोध - महिला सुधार राजा जी के सामाजिक विचारों का प्रमुख लक्ष्य था सती प्रथा का विरोध करने के साथ-साथ उन्होंने वर्तमान महिलाओं के दुखी जीवन के प्रति उत्तरदाई अन्य कू-प्रथाओं का भी विरोध किया उस समय देश भर में विशेष रूप से बंगाल के कुलीन ब्राह्मण में हिंदू समाज के अंतर्गत बहू पत्नी विवाह की प्रथा प्रचलित थी जो कि उस समय की एक ज्वलंत सामाजिक समस्या थी और एक भारी सामाजिक अन्याय की घोतक थी राजा जी ने विभिन्न धर्म ग्रंथो का संदर्भ देते हुए बताया कि किसी व्यक्ति को एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करने की अनुमति विशेष तथा और अतिआवश्यक स्थिति में ही मिलनी चाहिए उन्होंने बहू पत्नी विवाह के विरोध आवाज उठाई और तत्कालीन सरकार से कहा कि बिना मजिस्ट्रेट की आज्ञा प्राप्त किए किसी व्यक्ति को एक पत्नी के जीवित रहते हैं दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं रहना चाहिए इन प्रयत्नों के बावजूद भी यहां सामाजिक कुप्रथा शीघ्र तो समाप्त नहीं हो सकी परंतु राजा जी के प्रयासों ने भविष्य में इसके विरुद्ध जनमत को प्रबल किया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही यह प्रथा कानून द्वारा बंद हो पाई।

बाल विवाह का विरोध - उस समय बाल विवाह के दो रूप थे एक तो यहां की लड़के और लड़कियों दोनों का विवाह इतनी छोटी उम्र में कर दिया जाता था कि वह इस संबंध के पहलू से अनभिज्ञ होते थे। राजा जी ने इसे सामाजिक और नैतिकता मनाने के साथ-साथ और स्वस्थ परी पार्ट का कहकर इसे कानून आना बंद करने का प्रचार किया। इससे भी बुरी प्रथा अन्य मेल विवाह की थी जिसके अंतर्गत एक अर्थ वृद्ध पुरुष का विवाह 10 या 11 साल की कन्या के साथ कर दिया जाता था। सती प्रथा के रहते तो यहां गौर सामाजिक न्याय ही था राजा जी ने इस प्रथा का और अधिक विरोध किया यद्यपि ये कुप्रथा तत्काल तो समाप्त नहीं हो सकी बल्कि बात के समाज सुधारक आंदोलन को राजा जी के इन विचारों से बहुत प्रेरणा मिली और फल स्वरूप कालांतर में शारदा कानून के द्वारा बाल विवाह की प्रथा को बंद कर दिया गया।

विधवा विवाह का समर्थन- सती प्रथा का अंत करने के साथ-साथ यहां भी आवश्यक था की विधवाओं की सुरक्षा की व्यवस्था की जाए अतएव उन्होंने इस सामाजिक कलंक को धोने के लिए विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया ताकि विधवा हो जाने पर स्त्रियां पूर्ण सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत करने की क्षमता प्राप्त कर सके और उन्हें समाज में भर्त्सनापूर्ण ठुकराया ना जाए इस संबंध में भी उनका प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए ठोस कदम तो नहीं उठाए जा सके परंतु उनके विचार भविष्य के समाज सुधारकों को प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुए बाद में ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशव चंद्र सेन आदि ने इस दिशा में प्रचार करने के लिए प्रयास किया।

अंतरजाती विवाह का समर्थन- यद्यपि प्रत्यक्षत: राजा जी ने अंतरजातीय विवाह के समर्थन में प्रचार का कदम तो नहीं उठाया तथापि जाति प्रथा का विरोध, स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह आदि ऐसे तथ्य थे जिन्होंने भविष्य के सामाजिक सुधारको के लिए अंतरजाती विवाह का समर्थन प्रचार प्रसार के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

स्त्री तथा संपत्ति का अधिकार - राजा राममोहन राय के प्रयासों से दाएं भाग पप्रथा द्वारा संयुक्त परिवार की संपत्ति में स्त्री को अधिकार दिया गया पति की मृत्यु के पश्चात जीवित विधवा का भी परिवार की संपत्ति में अधिकार माना जाने लगा पुत्री के अधिकार के संबंध में राजा राममोहन राय की मान्यता थी कि पुत्र के अधिकार में से स्त्री को चौथाई संपत्ति मिलनी चाहिए आगे चलकर सन 1954 के एक्ट में पिता तथा पति की संपत्ति में नारी के अधिकार निश्चित किए गए

कुलीनवाद को चुनौती - कुलीनवाद की प्रथा ने दहेज की प्रथा में अत्यधिक वृद्धि की कुलीनवाद ने लड़कों की स्थिति को बढ़ा दिया और दहेज की कु प्रथा का विस्तार हुआ कुलीनवाद प्रथा ने बेमेल विवाह को भी प्रोत्साहन दिया बड़ी आयु के पति कम दहेज पर उपलब्ध थे अतः गरीब माता-पिता लड़की को वृद्ध पति के गले बांधने के लिए विवश हो जाते थे राजा राममोहन राय ने घोषणा की की जो पिता अपनी पुत्री का विक्रय करता है अथवा जो व्यक्ति धन दे कर किसी स्त्री से विवाह करता है तो यह दोनों धर्म की दृष्टि से अक्षम्य पाप है राजा राममोहन राय ने एक पत्नी के रहते हुए दूसरे स्त्री से विवाह करने का भी विरोध किया।


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