कुंभ मेला का आयोजन प्राचीन काल से हो रहा है लेकिन मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थ यात्री व्हेनसांग के लेख से मिलता है जिसमें छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है कुंभ मेले का आयोजन चार स्थानों पर होता है हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, उज्जैन।
प्रत्येक 3 वर्ष में आता है कुंभ- उक्त चार स्थानों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है इसलिए किसी एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है जैसे उज्जैन में कुंभ का आयोजन हो रहा है तो उसके बाद अब 3 वर्ष बाद हरिद्वार फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा उज्जैन के कुंभ को सिंहस्त कहा जाता है।
कुंभ क्या है- कलस को कुंभ कहा जाता है कुंभ का अर्थ होता है घड़ा इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकलने वाले अमृत कलश से जुड़ा है देवता असुर अमृत कलश को एक दूसरे से छीन रहे थे तब उसकी कुछ बूंदे धरती की तीन नदियों में गिरी थी जहां जब यह बूंदे गिरी थी उस स्थान पर तब कुंभ का आयोजन होता है उन तीन नदियों के नाम है गंगा गोदावरी और शिप्रा।
अर्ध कुंभ क्या है- अर्ध का अर्थ है आधा हरिद्वार और प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्ध कुंभ का आयोजन होता है पौराणिक ग्रंथो में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिष विश्लेषण उपलब्ध है कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व में एवं पप्रयाग और नासिक में मनाया जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में तीन सालों का अंतर होता है यह माघ मेला संगम पर आयोजित एक वार्षिक समारोह है।
सिंहस्थ क्या है- सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है इसके अलावा सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी के तट पर नासिक में होता है इसे महाकुंभ भी कहा जाता है क्योंकि यह योग 12 वर्ष बाद ही आता है इस कुंभ के कारण ही यहां धारणा प्रचलित हो गई की कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है जबकि यहां सही नहीं है।
कुंभ मेले का पर्व इन चार स्थानों पर -
हरिद्वार में कुंभ- हरिद्वार का संबंध मेष राशि से है कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है हरिद्वार और प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्ध कुंभ का भी आयोजन होता है।
प्रयाग में कुंभ- प्रयाग कुंभ का विशेष महत्व इसलिए हैं क्योंकि यहां 12 सालों के बाद गंगा यमुना सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयाग में किया जाता है।
नासिक में कुंभ- 12 वर्षों में एक बार सिंहस्त कुंभ मेला नासिक एवं त्रयंबकेश्वर में आयोजित होता है सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व गोदावरी नदी के तट पर नासिक में होता है अमावस्या के दिन बृहस्पति सूर्य एवं चंद्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है।
उज्जैन में कुंभ- सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्षदायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।
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