श्री कृष्णा जी का व्यक्तित्व ओशो की दृष्टि से
कृष्ण पर ज़्यादा भरोसा करना मुश्किल है, शायद कहीं और ऐसा कोई नहीं मिलेगा। किसी बात का पक्का वादा करना उसके बस की बात नहीं। बिलकुल छोटे बच्चे की तरह ही बर्ताव करता है। कसम खाई थी कि हथियार नहीं उठाएगा, फिर उठा लिया। कसमों का कोई हिसाब-किताब नहीं रखता, कौन याद रखे? कसम तो छोटी-छोटी बातों की होती हैं, लेकिन उसका व्यवहार बिलकुल बच्चे जैसा सच्चा है। लोग मुझसे पूछते हैं कि कृष्ण के इस रवैये में तुम क्या देखते हो? मैं कुछ खास नहीं देखता। बस एकदम सीधा-सादा बर्ताव है। कसम खाई थी किसी एक पल में, वो पल अब खत्म हो गया। नया पल आ गया। इस नए पल की नई स्थिति है, नई भावना है। अब इस नए पल के मुताबिक नया जवाब देना होगा। अगर पुरानी कसमों में फंस कर रह जाते तो...
मर्यादा होती थी। बंधे नहीं रहे। नए ज़माने के साथ नए तरीके से बदले। तुमने कृष्ण का कोई नाम सुना है? रणछोड़ दास जी। भगोड़ा दास जी। जब मौका मिला तो भागना ही सही समझा। मतलब ये नहीं कि जिद पकड़े रहो, चाहे जान ही क्यों न चली जाए। हमारा झंडा ऊँचा रहे, लेकिन हालत देखो तो भागना ही ठीक है, उसमें घमंड नहीं दिखाना चाहिए। उनके भक्तों ने भी खूब नाम कमाया। रणछोड़ दास जी ने कृष्ण की एक हद पार कर दी। कृष्ण को समझना थोड़ा मुश्किल है, राम सीधे-सादे हैं। राम तो मैं कुछ खास नहीं, महिमा है, लेकिन कोई खासियत नहीं।
नहीं, महात्मा जरूर हैं लेकिन संत नहीं, इसलिए समझ के छोड़ दिया। जब परमात्मा की बात करनी हो तो राम वहाँ नहीं आते। और ये बात हिंदुओं ने भी मानी है, उन्होंने भी राम को अंशावतार कहने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि बात गलत हो जाएगी। कृष्ण को पूरा अवतार कहा गया है, मतलब पूरा परमात्मा। पूरा परमात्मा का मतलब होता है कि अब कोई मर्यादा नहीं। मर्यादा तो इंसान की होती है, सीमा भी इंसान की होती है, तो ठीक है। राम के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम नाम दिया गया है, मतलब पुरुषों में सबसे उत्तम मर्यादा वाले। मर्यादा की जो सबसे बड़ी सीमा है, उसमें राम बिलकुल फकीर हैं। और जो कोई कृष्ण के पीछे चलना चाहे, उसे सारी धारणाओं को छोड़ना पड़ेगा।
से मुक्त हो जाना जरूरी है। ये सोच के कि कुछ भी नहीं है, तभी तुम आलस से बाहर आ पाओगे। फिर तुम समझ पाओगे कि जो कुछ भी हो रहा है, वो ठीक है। बुरा भी अपनी जगह जरूरी है। वो भी चाहिए। उसके बिना जीवन फीका हो जाएगा। जीवन ही नहीं रह पाएगा। कांटे भी होने चाहिए। कांटों के बिना फूल इतने खूबसूरत नहीं लगेंगे। कांटों की वजह से ही फूल इतने खास हैं। अगर सिर्फ फूल होंगे तो उनका कोई स्वाद नहीं रहेगा। कुरूपता भी जरूरी है, तभी तो सुंदरता का कोई मतलब बनता है। दुनिया भी जरूरी है, तभी मोक्ष का कोई मज़ा है। वरना कोई मज़ा नहीं रहेगा। अगर मोक्ष ही मोक्ष हो, तो जीवन में जो संगीत है, वो...
विपरीत स्वरों के बीच तालमेल होता है। कृष्ण की लीला को कृष्ण लीला नहीं कहते, उसे रास लीला कहते हैं। ये तो परम सच्चाई है। इसमें कृष्ण का कोई खास किरदार नहीं होता। इसलिए कृष्ण को बीच में नहीं रखा जा सकता। इसमें कृष्ण के नाम से परमात्मा ही बीच में होता है। लेकिन कृष्ण को मानना बड़ा मुश्किल होता है। उतना ही मुश्किल जितना परमात्मा को मानना होता है। इसलिए तुमने छोटे-छोटे मूर्तियां बना ली हैं, हर कोई अपने-अपने तरीके से परमात्मा को मानता है, क्योंकि पूरे परमात्मा को मानना बहुत मुश्किल है। सबने अपने-अपने घर में अलग-अलग तरीके से मान लिया। अपना-अपना।
अपना घर में गाँव का काम शुरू कर लिया, भगवान बना लिया अपने हिसाब से, मिट्टी के गणेश जी रख लिए पूजा-पाठ भी कर लिया। सिर में भी दर्द आया, झंझट मिटा दिया। तुमने अपना भगवान बना लिया है, क्योंकि असली भगवान तुम्हें डराता है, तुम्हें कांपाता है, तुम्हारे प्राण संकट में डाल देता है। रावण को समझो तो बुरा आदमी कैसा होता है ये पता चल जाएगा। राम को समझो तो अच्छा आदमी कैसा होता है ये समझ में आ जाएगा। कृष्ण को अगर समझो तो समझोगे कि परमात्मा वाला जीवन कैसा होता है, भागवत जैसा जीवन कैसा होता है। वहाँ अच्छा और बुरा दोनों मिलते हैं। अच्छा और बुरा दोनों किनारे की तरह हैं।
परमात्मा की नदी दोनों के बीच बहती है, दोनों को छूती है। कृष्ण के जीवन में अच्छा भी है और बुरा भी। कृष्ण का जीवन पूरा है, टूटा हुआ नहीं, चुना हुआ नहीं, पूरा ही पूरा है। इसमें कोई चुनाव नहीं है।
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