भगवान श्रीकृष्ण: जीवन परिचय, लीलाएँ और दर्शन

भगवान श्रीकृष्ण: जीवन परिचय, लीलाएँ और दर्शन

भगवान श्रीकृष्ण हिंदू धर्म में विष्णु के आठवें अवतार और "सर्वश्रेष्ठ पूर्णावतार" माने जाते हैं। उनका जीवन चमत्कारों, रहस्यों और गहन आध्यात्मिक शिक्षाओं से भरा है। आइए उनके जीवन के प्रमुख पहलुओं को समझें:

1. जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म तिथि एवं स्थान: 21 जुलाई, 3228 ईसा पूर्व (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) को मथुरा के कारागार में ।  
- माता-पिता: वासुदेव (पिता) और देवकी (माता), पालन-पोषण यशोदा और नंदबाबा द्वारा गोकुल में ।  
- जन्म रहस्य: कंस को भविष्यवाणी थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी। अतः कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद वासुदेव ने उन्हें यमुना पार कर गोकुल पहुँचाया ।  
- प्रारंभिक लीलाएँ:  
- 6 दिन की उम्र: पूतना राक्षसी का वध ।  
- 2 वर्ष: त्रिणिवर्त राक्षस का संहार ।  

2. बाल्यावस्था की लीलाएँ 
श्रीकृष्ण ने गोकुल और वृंदावन में अद्भुत चमत्कार दिखाए, जिनमें शामिल हैं:  

कालिया नाग मर्दन- 5 वर्ष की आयु में यमुना नदी में विषैले सर्प का दमन किया ।                       
गोवर्धन पर्वत धारण- 7 वर्ष 2 माह की आयु में इंद्र के क्रोध से गोकुलवासियों की रक्षा के लिए पर्वत उठाया । 
रास लीला- 8 वर्ष 1 माह की आयु में गोपियों के साथ दिव्य नृत्य किया ।                             
अन्य चमत्कार: बकासुर, अघासुर जैसे राक्षसों का वध, गोपियों का चीरहरण (5 वर्ष की आयु में), और ब्रह्मा का गर्व भंग किया।

3. युवावस्था और राजनीतिक भूमिका  
- शिक्षा: 11 वर्ष की आयु में सांदीपनी मुनि के गुरुकुल में 64 कलाओं और वेदों का ज्ञान प्राप्त किया ।  
- कंस वध: 10 वर्ष 2 माह की उम्र में मथुरा लौटकर अत्याचारी मामा कंस का वध किया ।  
- द्वारका स्थापना: 28 वर्ष की आयु में समुद्र तट पर द्वारका नगरी बसाई, जिसे विश्वकर्मा और मयदानव ने बनाया ।  
- विवाह:  
- 8 प्रमुख पत्नियाँ: रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, भद्रा, लक्ष्मणा आदि ।  
 - 16,100 कन्याओं से विवाह: नरकासुर से मुक्त कराई गई कन्याओं को समाज द्वारा अस्वीकार किए जाने पर कृष्ण ने 16,100 रूप धारण कर उनसे विवाह किए ।  

4. महाभारत और गीता उपदेश  
- अर्जुन के सारथी: 89 वर्ष की आयु में कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन को जीवन-दर्शन समझाया, जो भगवद् गीता के रूप में प्रसिद्ध हुआ । 
- प्रमुख योगदान:  
  - शिशुपाल वध (75 वर्ष की आयु में) ।  
  - द्रौपदी चीरहरण के समय उसकी लाज बचाई ।  
  - पांडवों को राजनीतिक सलाह देना।  

5. देहत्याग और रहस्य
- अंतिम घटना: 124 वर्ष की आयु में प्रभास क्षेत्र (गुजरात) में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न अवस्था में "जरा" नामक बहेलिए का तीर लगने से देहत्याग ।  
- रहस्य:  
- शरीर से मेघ श्यामल (काले, नीले व सफेद मिश्रित) वर्ण की आभा निकलती थी ।  
- देह से गोपीचंदन व रातरानी जैसी सुगंध आती थी 
- 119 वर्ष की उम्र में भी युवा जैसा शरीर, बिना झुर्रियों या सफेद बालों के ।  

6. दर्शन और प्रतीकवाद
- भक्ति योग: प्रेम, करुणा और समर्पण के माध्यम से मोक्ष का मार्ग ।  
रूप-स्वरूप:  
- श्याम वर्ण: अंधकार और अनंत का प्रतीक ।  
- मुरलीधर: बांसुरी द्वारा मन के विकारों का शमन।  
- गोविन्द: गायों एवं प्रकृति के संरक्षक ।  
- 108 नाम: वासुदेव (जन्म के समय पिता द्वारा दिया गया नाम), मोहन, गोपाल, केशव आदि ।  

प्रमुख नामों की सारणी 
वासुदेव- वसुदेव के पुत्र (जन्म के समय पिता द्वारा नामकरण )  
गोविन्द- इंद्र का अहंकार भंग करने वाले (गोवर्धन लीला के बाद प्राप्त)
मुरलीधर- बांसुरी धारण करने वाले (बांसुरी वादन से जुड़ाव)
रणछोड़- युद्ध छोड़कर भागने वाले (कंस से युद्ध के दौरान)

7. सांस्कृतिक प्रभाव और उपासना  
- त्योहार: जन्माष्टमी, होली, दिवाली (नरकासुर वध के उपलक्ष्य में) ।  
- कला एवं नृत्य: भरतनाट्यम, ओडिसी, कथकली जैसे नृत्यों में कृष्ण-लीलाओं का चित्रण ।  
- मंदिर: द्वारकाधीश (गुजरात), जगन्नाथ पुरी (ओडिशा), बांके बिहारी (वृंदावन) ।  
- वैश्विक प्रसार: 1960 के दशक से ISKCON द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कृष्ण भक्ति का प्रचार ।  
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण का जीवन मानवीय संघर्षों, दैवीय चमत्कारों और गूढ़ दर्शन का अद्वितीय संगम है। वे योगी, राजनीतिज्ञ, प्रेमी और सर्वोच्च ईश्वर—सभी रूपों में मानवता को "निष्काम कर्म" और "धर्म की स्थापना" का संदेश देते हैं। जैसा कि गीता में उनका कथन है:  
> यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति... तदात्मानं सृजाम्यहम्" 
(जब-जब धर्म का ह्रास होता है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूँ।)


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोलह महाजनपद- बौद्ध ग्रंथ अगुत्तर निकाय तथा जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में सोलह महाजनपदों के सूची दी गई है ।

जैन धर्म

सिंधु सभ्यता का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन तथा नगर निर्माण