वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल के एक प्रमुख घटना अंग्रेजों से मराठा का संघर्ष जो प्रथम मराठा युद्ध के नाम से जाना गया।
प्रथम मराठा युद्ध के कारण - प्रथम मराठा युद्ध का मुख्य कारण मराठों की पारस्परिक फूट और अंग्रेजों द्वारा इससे अधिक से अधिक लाभ उठाने की नीति थी। सन 1772 में पेशवा माधव राव की मृत्यु हो गई माधवराव अत्यंत योग्य और दूरदर्शी शासक थे।
उन्होंने पानीपत के तीसरे युद्ध के पश्चात मराठों को पूर्ण संगठित करने का एक महान कार्य किया था। उनकी मृत्यु के बाद मराठों की शक्ति कम होने लगी। पेशवा पद के लिए मराठा सरदारों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। माधवराव के चाचा रघुनाथ राव पेशाब पद प्राप्त करना चाहते थे। इस उद्देश्य से माधवराव के भाई नारायण राव की हत्या कर दी गई। कुछ समय के लिए रघुनाथ राव पेशवा बन गए किंतु कुछ मराठा सरदारों ने इसका प्रबल विरोध किया और माधवराव के एक अल्प वयस्क पुत्र को पैसवा बना दिया। राघोबा (रघुनाथ राव) को पुणे छोड़ना पड़ा और उन्होंने भाग कर अंग्रेजों के पास शरण ली। मराठों की इस पारस्परिक फूट से अंग्रेज पूरा लाभ उठाना चाहते थे। सन 1775 में अंग्रेजों ने राघोबा से सूरत संधि की। इस संधि के अनुसार अंग्रेजों ने राघोबा को सैनिक सहायता देना स्वीकार किया बदले में राघोबा ने उन्हें सेना का खर्च सालसेट, बेसिन ,भरूच तथा सूरत के राजस्व का कुछ हिस्सा देना स्वीकार किया राघोबा ने कंपनी के शत्रु से किसी प्रकार का समझौता न करना भी स्वीकार किया प्रथम मराठा युद्ध का मुख्य कारण सूरत संधि ही थी।
सूरत संधि दोषपूर्ण- सूरत संधि मुंबई की सरकार ने बंगाल सरकार के गवर्नर जनरल की अनुमति के बिना ही की थी। यद्यपि रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार ऐसी अनुमति आवश्यकता थी। इसके अतिरिक्त पुना सरकार और अंग्रेजों की कोई शत्रुता भी नहीं थी। इस तरह सूरत की संधि दोषपूर्ण और मराठों के आंतरिक मामलों में एक अनावश्यक हस्तक्षेप थी।
युद्ध की घटनाएं -
(१) मुंबई की सरकार ने राघोबा की सहायता के लिए एक सेना रवाना कर दी 18 मई 1775 को और आरास नामक स्थान पर मराठों और अंग्रेजो में युद्ध हुआ जिसमें मराठों की पराजय हो गई किंतु कोलकाता की काउंसिल ने मुंबई सरकार के कार्यों को निरस्त कर दिया और मराठों से चर्चा करने के लिए अपना प्रतिनिधि पुणे की सरकार के पास भेजा।
(२) कोलकाता की काउंसिल और पुणे की सरकार में एक नई संधि हुई जो पुरंदर की संधि के नाम से प्रसिद्ध है। इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने रघुनाथ राव को सहायता देना स्वीकार किया। मराठों ने क्षतिपूर्ति के रूप में 10 लख रुपए तथा भड़ौच जिले की आय और सालसेट का द्वीप अंग्रेजों को देना स्वीकार किया।
(३) मुंबई की सरकार ने पुरंदर की संधि से असंतुष्ट होकर गृह सरकार (ब्रिटेन सरकार) से विषेशानुमति प्राप्त कर ली और राघोबा को पुनः अपने शरण में ले लिया। राघोबा को पेशवा बनाने के उद्देश्य से 1778 में मराठों पर आक्रमण कर दिया। तलेगांव नामक स्थान पर मराठों और अंग्रेजो में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजों की बुरी तरह पराजय हुई और उन्हें बड़गांव की अपमानजनक संधि मंजूर करने के लिए विवश होना पड़ा इस संधि से अंग्रेजों की प्रतिष्ठा धूल मिल गई।
पुनः यूद्ध और सालबाई की संधि 1782 - वारेन हेस्टिंगज ने अंग्रेजों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पूर्ण प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाई। उसने करनल गोडार्ड के नेतृत्व में एक विशाल सेना पुणे की ओर रवाना की। इस सेना ने मध्य भारत से होकर दक्षिण में प्रवेश किया। किंतु मराठों ने पुन प्रबल प्रतिरोध किया। और हेस्टिंगज को सफलता नहीं मिल सकी। अंग्रेजों की एक सेना ने गोहद के राणा की सहायता से ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। इस समय महाद जी सिंधिया उत्तरी भारत में मराठों के शक्तिशाली नेता थे। उन्होंने अंग्रेजों से सालबाई नामक स्थान पर सन्धि कर ली।
मई 1782 में सालबाई की संधि से प्रथम मराठा युद्ध का अंत हुआ। इस संधि के अनुसार सालवेट पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार कर लिया गया। नारायण राव के पुत्र माधव राव नारायण राव को अंग्रेजों ने पेशवा मान लिया। यमुना नदी के पश्चिम के प्रदेश पर सिंधिया का अधिकार अंग्रेजों ने स्वीकार कर लिया। पुणे की सरकार की ओर से राघोबा को पेंशन दे दी गई। सालबाई की संधि से अंग्रेजों को कोई लाभ नहीं हुआ। कंपनी सरकार को सालवेट नामक स्थान अवश्य प्राप्त हुआ। किंतु दीर्घकालीन मराठा युद्ध के कारण उनका खजाना खाली हो गया। और हेस्टिंग्ज को धन की कमी को पूरा करने के लिए अनेक अनुचित उपायों का सहारा लेना पड़ा। इस युद्ध से अंग्रेजों को मराठाओं की आंतरिक दुर्बलता का पता लग गया और आगामी मराठा युद्ध से उन्होंने इससे पूरा लाभ उठाया।
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