मध्यकालीन राजपूताना में नगर नियोजन

भारत में राजपूताना अथवा वर्तमान राजस्थान में विभिन्न राजपूत वंश ने शासन किया था राजपूताना शैली में अनेक नगरों का नियोजन किया गया मंदिर तथा हवेलियां भवन स्थापित के रूप में निर्मित की गई थी मध्यकाल के पूर्व राजपूताना सहित उत्तरी भारत में बिहार तक गुर्जर प्रतिहार वंश का राज्य था उनके पश्चात राजपूताने पर गुर्जर प्रतिहारों के स्थान पर गहढ़वाल शासक बन गया दोनों राजवंशों के समय राजपूताने में नागर शैली के अनेक मंदिर का निर्माण किया गया था। सल्तनत कालीन 1206- 1526 ई में राजपूताने के मेवाड़ तथा मारवाड़ के राजपूत शासको पर केंद्रीय मुस्लिम सत्ता का विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था। राजपूताना में अनेक राजपूत राज्य थे जिसमें चित्तौड़ के सिसोदिया वंश का प्रभाव सर्वाधिक था। राजपूताने पर दिल्ली सल्तनत का अधिकार नहीं होने से इस काल में राजपूताना स्थापत्य कला पर मुस्लिम प्रभाव नहीं पड़ा था समय के साथ में मुगलों के संपर्क में आने पर राजपूताना स्थापित शैली प्रभावित हो गई।

1.मध्यकालीन राजपूताना में नगर नियोजन 

राजपूताना अर्थात वर्तमान राजस्थान के क्षेत्र में प्राचीन काल से ही नगर नियोजन अथवा स्थापत्य प्राचीन भारतीय वास्तु शास्त्र के आधार पर आयोजित किया जाता था। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण चित्तौड़ के निकट नगरी अथवा तुम कांकोट नगर के उत्खनन से प्राप्त होता है। मध्यकालीन राजस्थान में राजवंशी राजाओं ने स्वयं के नाम पर नगरों की स्थापना की थी। उदाहरण - जोधपुर जयपुर उदयपुर आदि।

मध्यकालीन राजस्थान में नगरों की स्थापना के पूर्व स्थल चयन पर अधिक महत्व दिया जाता था अधिकांश नगर सुरक्षा की दृष्टि से पहाड़ों के मध्य तथा घने जंगलों से आवर्त स्थान पर बताए गए थे उदाहरण के लिए आमेंर बूंदी अजमेर उदयपुर आदि।

प्राचीन वास्तु शास्त्र के आधार पर मध्यकालीन राजस्थानी नगरों में नगर की सुरक्षा हेतु खाईया तथा परकोते के चारों ओर प्रवेश द्वारा निर्मित किए गए। नगर के आंतरिक भाग में मंदिर महल भवन बस्तियां जलाशय तथा बावड़ियों के साथ ही सुनियोजित मार्ग बनाया गया मध्यकालीन राजस्थानी नगर स्थापत्यकला के यह विशेष लक्षण तथा अंग वर्तमान स्थिति मध्यकालीन नगरों में भी दृष्टिगोचर होते हैं।

2.मध्यकालीन राजपूत नगर नियोजन स्थापत्य का विकास 

मध्यकालीन राजपूताना अथवा वर्तमान राजस्थान में सल्तनत काल तथा उसके पूर्व नगर स्थापत्य तथा मुगल काल में अंतर स्थापित हो गया था। इस अंतर एवं विकास का उदाहरण कच्छवायों की राजधानी आमेर तथा जयपुर का नगर नियोजन है।

आमेर - मुगल काल के पूर्व सन 1526 के पूर्व कछवायो राजवंश ने आमेर( जयपुर के निकट) को सुरक्षा की दृष्टि से राजधानी के रूप में विकसित किया था। वर्तमान राजस्थान से दिल्ली सड़क मार्ग पर स्थित कछुवायो की तत्कालीन राजधानी आमेर पहाड़ी पर पहाड़ी नाको को संकीर्ण रखकर स्थल निर्धारित कर योजनाबद्ध रूप से बसाया गया था। दोनों और के पहाड़ी ढलान पर ऊंचे भवन हवेलिया कुलदेवी का मंदिर समतल भाग पर पानी के कुंड सड़के तथा बाजार सुनियोजित रूप से बनाए गए थे पहाड़ों के उच्च भाग पर राजमहल सुंदर राजधानी स्थापत्य के रूप में निर्मित किए गए थे वर्तमान में भी आमेर प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बना हुआ है।

जयपुर - सन 1562 में कछुवाया वंश का वैवाहिक संबंध मुगल सम्राट अकबर के साथ स्थापित हो गया राजा मानसिंह की बुआ जोधाबाई अकबर की पटरानी बन गई थी अतः आमेर पर मुगल आक्रमण का भय समाप्त हो गया। राजपूताना के अन्य राजा भी आमेर पर आक्रमण का दुस्साहस नहीं कर सकते थे। अतः कालांतर में कछुवाया नरेश सवाई जय सिंह ने आमेर के निकट मैदानी भाग में जयपुर नगर नियोजन कर बसाया जयपुर के स्थापत्य में हिंदू तथा मुगल स्थापत्य का सुंदर समन्वय स्थापित हो गया। जयपुर के निकट पहाड़ी पर नाहर दुर्ग का निर्माण जयपुर के लिए सतर्क प्रहरी स्थल के रूप में किया गया। जयपुर का नगर नियोजन समकालीन प्रसिद्ध वास्तुविद विद्याधर चक्रवर्ती द्वारा किया जाकर उनके निर्देश में नगर का विकास किया गया था। योजनाबद्ध प्रकार से विकसित जयपुर शहर वर्तमान में राजस्थान की राजधानी होकर संपूर्ण राजस्थान में नगर नियोजन की दृष्टि से बेजोड़ है।

जयपुर के अतिरिक्त राजस्थान के अन्य नगर जैसलमेर जोधपुर आमेर कोटा तथा उदयपुर नगरों के निर्माण एवं योजना समकालीन ऐतिहासिक ग्रंथों में उल्लेखित है। राजस्थानी नगर स्थापत्य कला तथा योजना में प्राचीन वास्तु शास्त्र की जनक मिलती है।


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