नवरात्रि कथा: माँ दुर्गा और महिषासुर का युद्ध
प्राचीन काल की बात है। एक बार महिषासुर नामक एक राक्षस ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान माँगने के लिए कहा। चालाक महिषासुर ने अमरता का वरदान माँगा। जब ब्रह्मा जी ने कहा कि कोई भी जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है, तो महिषासुर ने एक छलपूर्ण वरदान माँगा:
"हे प्रभु, मेरी इच्छा है कि कोई भी पुरुष, देवता, दानव या मनुष्य मुझे युद्ध में न मार सके। केवल एक स्त्री ही मेरी मृत्यु का कारण बन सके।"
महिषासुर को विश्वास था कि कोई भी स्त्री उसे पराजित नहीं कर सकती। ब्रह्मा जी ने "तथास्तु" कहकर उसे वरदान दे दिया।
वरदान पाते ही महिषासुर अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी हो गया। उसने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और इंद्रदेव सहित सभी देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई।
सभी देवता विष्णु जी और शिव जी की शरण में गए। महिषासुर के अत्याचारों की कहानी सुनकर सभी देवताओं के मन में क्रोध उत्पन्न हुआ। तब एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई, जिसमें सभी देवताओं की ऊर्जा समाहित हो गई। इसी ज्योति से माँ दुर्गा का अवतरण हुआ।
देवताओं ने माँ दुर्गा को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए:
· शिव जी ने त्रिशूल
· विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र
· इंद्रदेव ने वज्र
· वरुण देव ने शंख
· अग्नि देव ने बरछा
· यमराज ने कालदंड
· समुद्र देव ने कमल का फूल
· पर्वतराज हिमालय ने सिंह को उनका वाहन बनाया
माँ दुर्गा ने देवी का रूप धारण किया और अपने भयंकर रौद्र रूप में महिषासुर से युद्ध के लिए चल पड़ीं।
महिषासुर और माँ दुर्गा के बीच नौ दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। माँ दुर्गा ने प्रतिदिन एक नया रूप धारण किया और महिषासुर के सभी दुष्ट सहयोगियों का वध किया।
नौवें दिन, माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत करने का निश्चय किया। जब महिषासुर ने देखा कि उसकी सेना पराजित हो रही है, तो वह स्वयं भैंसे का रूप धारण करके युद्ध भूमि में आ गया। उसने अपने सींगों से पृथ्वी और आकाश को हिलाना शुरू कर दिया।
तब माँ दुर्गा ने अपना चंडिका रूप धारण किया। उन्होंने महिषासुर पर प्रहार करना शुरू किया। अंत में, जब महिषासुर थककर अपने वास्तविक रूप में आया, तो माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया।
इस प्रकार, दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसी दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
इसी घटना की याद में हम नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक मनाते हैं और दसवें दिन विजयादशमी के रूप में उत्सव मनाते हैं।

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